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:थी ताकत हिय में सरसायी ।
घर-घर के सजल अंधेरे से
 
मेघों ने कुछ उपदेश लिए,
जीवन की नसीहतें पायीं ।
::युग जीवन सरसाया ।
आंसू से भरा हुआ चुम्बन मुझपर बरसाया ।
 
ज़िंदगी नशा बन घुमड़ी है
ज़िंदगी नशे सी छायी है
::जिन लोगों ने
अपने अंतर में घिरे हुए
 
गहरी ममता के अगुरू-धूम
::के बादल सी
:वह हुलसी, वह अकुलायी
इस हृदय-दान की वेला में मेरे भीतर ।
 
जिनके स्वभाव के गंगाजल ने,
:युगों-युगों को तारा है,
जिनके कारण यह हिन्दुस्तान हमारा है,
 
कल्याण व्यथाओं मे घुलकर
 
जिन लाखों हाथों-पैरों ने यह दुनिया
::पार लगायी है,
:::सौ-सौ जीवन,
उन जन-जन का दुर्दान्त रुधिर
 
मेरे भीतर, मेरे भीतर ।
 
उनकी बाहों को अपने उर पर
:धारण कर वरमाला-सी
उनकी हिम्मत, उनका धीरज,
 
उनकी ताकत
पायी मैंने अपने भीतर ।
::उनके ही तो ।
यादें उनकी
 
कैसी-कैसी बातें लेकर,
जीवन के जाने कितने ही रुधिराक्त प्राण
:बेर-अबेर खिली,
क्रान्ति की मुस्कराती आँखों —
 
पर, लहराती अलकों में बिंध,
आंगन की लाल कन्हेर खिली ।
जनपथ पर मरे शहीदों के
अन्तिम शब्दों बिलम-बिलम,
 
लेखक की दुर्दम कलम चली ।
</poem>
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