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सब बुझे दीपक जला लूँ / महादेवी वर्मा
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16:20, 14 मई 2007
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं! <br><br>
भीत तारक
मंदते
मूंदते
द्रग <br>
भ्रान्त मारुत पथ न पाता, <br>
छोड उल्का अंक नभ में <br>
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Ramadwivedi