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विषकन्या / सरोज परमार
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15:05, 3 फ़रवरी 2009
[[Category:कविता]]
<poem>
ज़िन्दगी के पाँवों में
शब्द चिपकने को मचलते हैं
घुल जाती है।
काश! मेरा आज
गुलमोहर का
गुछ्छा
गुच्छा
बन जाए।
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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