<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
'''शीर्षक:''' शासन की बन्दूक बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!<br> '''रचनाकार:''' [[नागार्जुनसूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
उस हिटलरी गुमान यह घाट वही जिस पर सभी रहें है थूक हँसकर,जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक वह कभी नहाती थी धँसकर,आँखें रह जाती थीं फँसकर,काँपते थे दोनों पाँव बंधु!
बढ़ी बधिरता दस गुनीवह हँसी बहुत-कुछ कहती थी, बने विनोबा मूकधन्य-धन्य वहफिर भी अपने में रहती थी, धन्य वहसबकी सुनती थी, सहती थी, शासन की बंदूक सत्य स्वयं घायल हुआदेती थी सबको दाँव, गई अहिंसा चूक जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक बंधु!
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>