2,098 bytes added,
06:04, 4 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तेज राम शर्मा
|संग्रह=बंदनवार / तेज राम शर्मा}}
[[Category:कविता]]
<poem>
आधी रात में
बाढ़ से घिरे अपने घर को छोड़कर
मैं अपने शहर से निकल आया
सारा शहर धीरे-धीरे
पानी में डूब रहा था
लोग अपने मन को
घरों में डूबता हुआ छोड़कर
नग्न तन भाग रहे थे
दिशाहीन शहर में
नग्न तन सभी
अपना पता पूछते हुए भटक रहे थे
पिछली बार बाढ़ में
कितना डूबा था उनका घर
वे पक्के निशान
घरों की दीवारों पर छोड़ आए थे
नदी तल उथला हो गया है
उसमें भर आई है रेत
शहर धँस रहा है
उसके विरुद्ध पाताल में सक्रिय है कोई कालिया
पानी में डूबे घर कहीं खो गए हैं
अंधियारे में कहीं पलायन कर रहा है शहर
गली,घर,बगीचे,दरवाज़े
सब गायब हैं
चीखें, सिसकियाँ
भागते हुए शहर का
पीछा कर रही हैं
रात भर किसी के लिए
रुकेगा नहीं शहर
सुबह होते ही टूटी नाव में
मनु की तरह
लौट आएगा शहर
उसी कीचड़ पानी में
मैं पानी के नीचे ढूंढूंगा अपना घर
और घर में कहीं कैद अपना मन।
</poem>