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हासिल / अरुण कमल
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|रचनाकार=
अरुण कमल
|संग्रह=नये इलाके में /
अरुण कमल
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<Poem>
नोक महीन से महीन
करने की ज़िद में इतना
छीलता गया पेन्सिल
कि अन्त में हासिल रहा
ठूँठ ।
</poem>
अनिल जनविजय
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