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17:44, 5 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोमिन
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
उलझे न ज़ुल्फ़ से जो परेशानियों में हम
करते हैं इसपे नाज़ अदा-दानियों1 में हम
सरगर्म-रक़्स-ताज़ा2 हैं क़ुरबानियों में हम
शोख़ी से किसकी आए हैं जोलानियों3 में हम
साबित है जुर्मे-शिकवा न ज़ाहिर गुनाहे-रश्क़5
हैराँ हैं आप अपनी परेशानियों में हम
मारे ख़ुशी के मर गये सुबहे-शबे-फ़िराक़6
कितने सुबुक हुए हैं गराँ-जानियों7 में हम
आता है ख़्वाब में भी तेरी ज़ुल्फ़ का ख़्याल
बेतौर घिर गए हैं परेशानियों में हम
देखा इधर को तूने कि बस दम निकल गया
उतरे नज़र से अपनी निगहबानियों8 में हम
'''शब्दार्थ:
1. अदाएँ पहचाना, 2. उमंगों में व्यस्त, 3. हौसला, 4. शिकवे का गुनाह, 5. जलने का पाप, 6. वियोग रात की सुबह, 7. विपदाएँ, 8. निगरानी
</poem>