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आ के सज्जाद / मीर तक़ी 'मीर'
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06:33, 6 फ़रवरी 2009
चाक करना है इसी ग़म से गिरेबान-ए-कफ़न
कौन खोलेगा तेरे बन्द-ए-कबा
तेरे
मेरे
बाद
वो हवाख़्वाह-ए-चमन हूं कि चमन में हर सुब्ह
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