506 bytes added,
18:23, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
छोटी-छोटी खुशियों की ओर
हम मुड़कर देखते नहीं
बड़ी खुशियाँ दिखती नहीं हमें
उम्र गुजर जाती है यों ही
द्वार-द्वार खटखटाते हुए।
</poem>