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18:33, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
भला हो
इस बारिश का
जिसने धरती को दिये पेड़
नदी को एक नाव
और मुझे फसल
पर उसका क्या
जिसने धरती को दी एक कुर्सी
और कुर्सी ने छोड़ दिए
फसल को चट कर जाने वाले कीड़े
और नाव में छेद कर
उसे कर दिया नदी के हवाले
प्रकृति सब कुछ देती है
पर कुर्सी उस सब को
दर्ज कर लेती है
अपने बही-खातों में।
</poem>