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20:25, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
स्त्री शामिल रहती है
सबकी यात्रा में
सबसे निभाती अंत तक
किसी को करती
चरण-स्पर्श
किसी को प्रणाम
किसी के लिए व्रत
किसी के लिए चारों-धाम
थकती नहीं वह
सब करते हुए
जो रहता अनाम।
उसकी अपनी यात्रा में
शामिल नहीं होता कोई
फिर भी
उसके दुख का काँटा
गड़ा रहता सबके दिल में
सुख का भी
उसकी यात्रा
देह से होती शुरू
देह पर ही खत्म।
</poem>