Changes

कथन / केशव

755 bytes added, 20:28, 6 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
{{KKGlobal}}

{{KKRachna

|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
तुम कहती हो
छूना नहीं मुझे
छूने से हम
थोड़ा पराये हो जाते हैं
मैं कहता हूँ
स्पर्श तो ब्रह्म है
आज तक हम गुज़रते रहे
इसमें से होकर
अब इसे
हमसे होकर गुज़रने दो
मन से होकर गुज़रेगा
जब-जब
देह से थोड़ा-थोड़ा कर
ऊपर उठेंगे हम।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits