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23:00, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
<poem>
अचानक
आँख-मिचौनी खेलते
छिप जाते हो
इस खंडहर-महल में
सांय-सांय हवा-सी
भटकती हूँ तुम्हारी तलाश में
सहसा खुलता है कोई किवाड़
लिपट जाती मुझसे
गुनगुनी धूप
ऐसा ही है
तुम्हारा रूप?
</poem>