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23:15, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
<poem>
रास्ते के बीचों-बीच
पूछने लगता है एक पाँव
दूसरे से
तुम आ रहे हो
या जा रहे हो?
पाँवों की गति हो जाती है
कील पर घूमती मछली की आँख
अब बिंधी
तब बिंधी
छाया भ्रम है क्या?
तो फिर
छाया बींधने से
बिंधी कैसे
मछली की आँख-
न जाने कब उलझ जाती है
मेरी काया से एक छाया
समय का धनुर्धर
प्रत्यंचा साधे
बींधता है परछाईं
बींधी जाती हूँ
मैं
</poem>