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23:43, 6 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
भले ही न बचा हो
उसके पास देने के लिए कुछ भी
देने के बाद अपना सर्वस्व
मनुष्य के लिए फल
पशु के चारा
पथिक के लिए छाया
बेघर के लिए एक घर
पर एक खोखल
फिर भी बचा रखा उसने
पंछी के लिए।
</poem>