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00:40, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
मन्य्ष्य
एक फल
सृष्टि की प्रार्थना का
ईश्वर नी की स्वीकार
अपने किसी कमजोर पल में
ईश्वर के हाथ
लम्बे हैं
पर
मनुष्य की भूख से
लम्बे नहीं
ईश्वर ने दिया
वरदान
मनुष्य ने उसे
ईश्वर पर ही आज़ामाया
प्राणों की भीख माँगता
ईश्वर आगी-आगे
मनुष्य पीछे-पीछे दनदनाया
मनुष्य
एक उधार है
ईश्वर पर सृष्टि की सुबह से
चुके न चुके
शाम तक
ईश्वर की
आदत है मनुष्य
मनुष्य की
आदत है
उस आदत को भुनाना
अपनी ही रचना के सम्मुख
कितना लाचार है ईश्वर
आश्चार्य
कि बेजार नहीं
</poem>