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15:33, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
सयाने हो गये हैं शब्द
बेशक
पर इतने भी नहीं
कि हर रहस्य को
धर दें
अनंतकाल से प्रतीक्षारत हथेलियों पर
समूची प्रार्थनाओं की एवज में
एक ख़ुली किताब की तरह
एक सितारे की तरह
रोशन कर दें
तमाम-तमाम रातें
कि सूंघ सके हम
उस सत्य को
जो शब्दों की सड़क से होकर नहीं
ज़िंदगी की पगडंडी से होकर
बदल दे
शब्दों के आधे बंजर को भी
लहलाती फसल में।
</poem>