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मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार
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19:57, 6 सितम्बर 2006
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो
ईक
एक
बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी
गिराहे
गिराहें
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
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घनश्याम चन्द्र गुप्त