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मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार

3 bytes added, 19:57, 6 सितम्बर 2006
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक एक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहेगिराहें
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे