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05:10, 8 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
बुलबुल, चमन में किसकी हैं ये बदशराबियाँ
टूटी पड़ी हैं गुंचों की सारी गुलाबियाँ
तुझ रुख़ पे ता निसार करें मेहरो-माह को
लबरेज़ सीमो-ज़र से हैं दोनों रकाबियाँ
सैयाद, कह तो किनने कबूतर को दाम में
सिखलाइयाँ हैं दिल की मिरे इज़्तराबियाँ
ज़ाहिद, हमारे कहने से जो तू पिए शराब
मिसरी की दें मँगा के तुझे हम गुलाबियाँ
फ़रहादो-क़ैस वूँ गये, 'सौदा' का है ये हाल
क्या-क्या किया हैं इश्क़ ने ख़ानाख़राबियाँ
'''शब्दार्थ:
1. ताकि 2. सूरज-चाँद 3. भरी हुई 4. चाँदी और सोना 5. जाल 6. बेचैनियाँ 7. फ़रहाद और मजनूँ 8. उधर, उस तरह 9. इश्क़ ने क्या-क्या घर बरबाद किए हैं
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