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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

आमाल1 से मैं अपने बहुत बेख़बर चला
आया था आह किसलिए और क्या मैं कर चला

है फ़िक्रे-वस्ल2 सुब्ह' तो अंदोहे-हिज्र3 शाम
इस रोज़ो-शब4 के धंधे में अब मैं तो मर चला

निकले पड़े है जामा से कुछ इन दिनों रक़ीब
थोड़े से दम-दिलासे में कितना उफर चला

चलने का मुझको घर से तिरे कुछ नहीं है ग़म
औरों से गो मैं इक-दो क़दम पेशतर5 चला

क्या इस चमन में आन के ले जायेगा कोई
दामन को मेरे सामने गुल झाड़कर चला

भेजा है वो पयाम मैं उस शोख़ को कि आज
कर ख़िज़्रे-राह6 मर्ग7 को पैग़ाम्बर8 चला

तूफ़ाँ भरे था पानी जिन आँखों के सामने
आज अब्र9 उनके आगे ज़मीं करके तर चला

'सौदा' रखे था यार से यक-मू11 नहीं ग़रज़
ऊधर11 खुली जो ज़ुल्फ़, इधर दिल बिखर चला

'''शब्दार्थ:
1. कर्मों 2. मिलन की चिंता 3. वियोग का दुख 4. दिन-रात 5. आगे 6. मार्गदर्शक 7. मृत्यु 8. पैग़म्बर 9. बादल 10. ज़रा-सा भी 11. उधर
</poem>