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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़
|संग्रह=संसार की धूप / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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[[Category:कविता]]
<poem>जिन घरों के बच्चे
अक्सर पानी पी कर
भूख कोधता बताते हैं

जिन घरों के बच्चे
ज़िद नहीं करते
भीतर-ही-भीतर मचलते हैं

जिन घरों के बच्चे
बापू की दुर्लभ मुस्कान
माँ की हँसी से
मेलों-खिलौनों की तरह बहलते हैं

रेत के नहीं बनाते घर
हर बरसात के बाद
दरकी दीवारों के लिए
मिट्टी को चिकना बनाते हैं
पाँव के तले
हू-ब-हू महसूस करते हैं धरती

जिन घरों के बच्चे
बचपन के बीचो6 बीच
बचपनहीन होते हैं
वे घर उम्मीदों के भण्डार हैं
उन घरों के बच्चे
बेहतर दुनिया के
विश्वस्त आधार हैं


</poem>
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