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मृत प्राय़ः / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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16:28, 8 फ़रवरी 2009
असाधरण मौतें
और मृत्यु -दर से
प्रतिदिंलगभग
प्रतिदिन लगभग
मौतों का
हिसाब लगाते सोचता है
ग़नीमत है इन दिनों
मृत्यु की असंख्य संभावनाओं में
आश्चर्यजनक है
जीवित रहना
जीवित रहना
उफनती चढ़ी नदी में
तैरते रहना है
प्रकाश बादल
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