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एक आदमी / धूमिल
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19:10, 8 फ़रवरी 2009
जिससे शालीनता इतनी ज़्यादा टपक चुकी है
कि वहाँ एक तैरता हुआ पत्थर है
संभावनाओं
सम्भावनाओं
में लगातार पहलू बदलता हुआ
अपनी पराजित और जड़-विहीन हँसी पर
अतीत और मानसून का खोखलापन
Eklavya
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