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इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत?
 
'''मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य
</poem>
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