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लोग टूट जाते हैं / बशीर बद्र
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14:05, 9 फ़रवरी 2009
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{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में<br>
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में<br><br>
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी<br>
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में<br><br>
</poem>
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