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लोग टूट जाते हैं / बशीर बद्र
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14:43, 9 फ़रवरी 2009
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस
शराब खाने
शराबख़ाने
में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
द्विजेन्द्र द्विज
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