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'''शीर्षक:''' बाँधो न नाव इस ठाँवजिसकी हममें कमी है, बंधुदोस्तो!<br> '''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"आंद्री पिअर (स्विस कवि)]]
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बाँधो न नाव इस ठाँवजिसकी हममें कमी है, बंधुदोस्तो!पूछेगा सारा गाँव, बंधु!वह है साहस
यह घाट वही जिस पर हँसकर,उस समय बोलने का साहसवह कभी नहाती थी धँसकर,जब शब्द जल रहे हों;आँखें रह जाती थीं फँसकर,पत्थर को पत्थर कहने काकाँपते थे दोनों पाँव बंधु!ख़ून को ख़ूनऔर डर को डर
एक दिन, जब वह हँसी बहुत-कुछ कहती थी, बड़ी बर्फ़ आएगीफिर भी अपने में रहती थी, हहराती हुईसबकी सुनती थी, सहती थी,तब कठिन होगादेती थी सबको दाँव, बंधु!ख़ुद को समझ पाना '''अनुवाद : विष्णु खरे
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