557 bytes added,
15:51, 11 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=
}}
<Poem>
पहाड़ से गिरती
पत्थरों से चोट खाती
वह नदी सूख चुकी है
पलक की कोर से
दो बूँदें ओस की
उठा सको तो उठा लो
आँसुओं के सैलाब को
पानी की ज़रूरत है
समय का सूर्य
और गर्म होने वाला है
</poem>