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अकेले होकर / नवीन नीर

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|रचनाकार=नवीन नीर
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<Poem>
तुम सड़क पर चलते वक़्त
धरती पर
पड़ रही
अपनी परछाईं को भी
खुरचकर
अपने से दूर करना चाहते हो

तन्हाई की बंद-खुली
::दरारों
::में से
:::गुज़रना चाहते हो

श्मशान की गन्ध को
ज़िन्दा साँसों में भरना चाहते हो
दोस्त-- तुम इतने अकेले होकर क्यूँ मरना चाहते हो?
</poem>