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16:07, 11 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन नीर
|संग्रह=
}}
<Poem>
तुम सड़क पर चलते वक़्त
धरती पर
पड़ रही
अपनी परछाईं को भी
खुरचकर
अपने से दूर करना चाहते हो
तन्हाई की बंद-खुली
::दरारों
::में से
:::गुज़रना चाहते हो
श्मशान की गन्ध को
ज़िन्दा साँसों में भरना चाहते हो
दोस्त-- तुम इतने अकेले होकर क्यूँ मरना चाहते हो?
</poem>