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हँस रहा हूँ मैं / विजय सिंह

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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह
|संग्रह=
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<Poem>
'''सूरज के लिए

पल-पल मुश्किल समय में
अकेला नहीं हूँ

सूरज की हँसी है
मेरे पास

सूरज की हँसी
तीरथगढ़ का जलप्रपात है
जहाँ मैं डूबता-उतराता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी थकान

सूरज हँस रहा है
हँस रहा है घर
हँस रहा है आस-पड़ोस
हँस रहे हैं लोग-बाग
हँस रहे हैं आसमान में उड़ते पक्षी
हँस रहा हूँ मैं
हँस रही है पृथ्वी इस समय।
</poem>