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18:34, 12 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
|संग्रह=उस जनपद का कवि हूँ / त्रिलोचन
}}
<poem>
गद्य-वद्य कुछ लिखा करो। कविता में क्या है।
आलोचना जगेगी । आलोचक का दरजा –
मानो शेर जंगली सन्नाटे में गर्जा
ऐसा कुछ है । लोग सहमते हैं । पाया है
इतना रुतबा कहाँ किसी ने कभी । इसलिए
आलोचना लिखो । शर्मा ने स्वयं अकेले
बड़े-बड़े दिग्गज ही नहीं, हिमालय ठेले,
शक्ति और कौशल के कई प्रमाण दे दिए;
उद्यम करके कोलतार ले ले कर पोता,
बड़े बड़े कवियों की मुख छवि लुप्त हो गई,
गली गली मे उनके स्वर की गूंज खो गई,
लोग भुनभुनाए घर में इस से क्या होता !
रुख देख कर समीक्षा का अब मैं हूँ हामी,
कोई लिखा करे कुछ, अब जल्दी होगा नामी।
</poem>