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16:56, 13 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=
}}
<Poem>
जब-जब तुम्हारी आँख से
झरे हैं आँसू
उन तक
पहुँचे ही हैं हमेशा
मेरी स्मृति के अदृश्य हाथ ।
तुम्हें उन का स्पर्श
हो या न हो
पर मैंने सदैव उठाया है
तुम्हारे आँसुओं का भार ।
तुम्हारे इंतज़ार में
तुम्हारे बाद
कुछ भी शेष नहीं है
तुम्हारे अदृश्य आँसुओं के सिवाय ।
'''अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा'''
</poem>