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|रचनाकार=बशीर बद्र
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तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है
तेरा हाथ मेरे काँधे नीम पे दर्या बहता अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैंसूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है<br>कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है।<br><br>
नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं,<br>सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है।<br><br> पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है<br>याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।है</poem>