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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगाघर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शामजब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
भीगी हुई आँखों आँसू को कभी ओस का ये मंज़र क़तरा मिलेगा <br>समझनाघर छोड़ के मत जाओ कहीं घर ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा <br><br>
फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम <br>इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखेंजब धूप बाज़ार में साया ऐसा कोई सर पर ज़ेवर न मिलेगा <br><br>
आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना <br>ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा <br><br> इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें <br>बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा <br><br> ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत<br>इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा <br><br/poem>