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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैंहाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारोठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं
मिल ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दाहम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं <br>हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं <br><br>
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो <br>ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं <br><br> ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा <br>हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं <br><br> उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे <br>वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं <br><br/poem>