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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहेमुक़द्दर में चलना था चलते रहे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कोई फूल सा हाथ काँधे पे थामेरे पाँव शोलों पे चलते रहे
मुसाफ़िर मेरे रास्ते में उजाला रहादिये उस की आँखों के रस्ते बदलते रहे <br>मुक़द्दर में चलना था चलते जलते रहे <br><br>
कोई फूल सा हाथ काँधे पे वो क्या था <br>जिसे हमने ठुकरा दियामेरे पाँव शोलों पे चलते मगर उम्र भर हाथ मलते रहे <br><br>
मेरे रास्ते में उजाला रहा <br>मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ीदिये उस की आँखों किराये के जलते घर थे बदलते रहे<br><br>
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया <br>सुना है उन्हें भी हवा लग गईमगर उम्र भर हाथ मलते हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे <br><br>
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी <br>किराये के घर थे बदलते रहे <br><br> सुना है उन्हें भी हवा लग गई <br>हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे <br><br> लिपट के चराग़ों से वो सो गये <br>जो फूलों पे करवट बदलते रहे <br><br/poem>