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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>मुस्कुराती हुई धनक है वहीउस बदन में चमक दमक है वही
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~फूल कुम्हला गये उजालों केसाँवली शाम में नमक है वही
मुस्कुराती हुई धनक अब भी चेहरा चराग़ लगता है वही <br>उस बदन में बुझ गया है मगर चमक दमक है वही <br><br>
फूल कुम्हला गये उजालों के <br>कोई शीशा ज़रूर टूटा हैसाँवली शाम में नमक गुनगुनाती हुई खनक है वही <br><br>
अब भी चेहरा चराग़ लगता है<br>बुझ गया है मगर चमक है वही <br><br> कोई शीशा ज़रूर टूटा है<br>गुनगुनाती हुई खनक है वही <br><br> प्यार किस का मिला है मिट्टी में <br>इस चमेली तले महक है वही <br><br/poem>