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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>याद किसी की चाँदनी बन कर कोठे कोठे उतरी हैयाद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~रात की रानी सहन-ए-चमन में गेसू खोले सोती हैरात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती है
याद किसी की चाँदनी बन तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर कोठे कोठे उतरी है <br>अपनी आग बुझा लोगेयाद किसी उस के जी से पूछो जो पत्थर की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी तरह चुप रहती है <br><br>
रात की रानी सहन-ए-चमन पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैंहर बस्ती में गेसू खोले सोती है <br>रात-बेरात उधर मत जाना इक नागिन भी रहती मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है <br><br>
तुम को क्या तुम ग़ज़लें कह कर अपनी आग बुझा लोगे <br>उस के जी से पूछो जो पत्थर की तरह चुप रहती है <br><br> पत्थर लेकर गलियों गलियों लड़के पूछा करते हैं <br>हर बस्ती में मुझ से आगे शोहरत मेरी पहुँचती है <br><br> मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई <br>इसी लिये मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है <br><br/poem>