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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>सर पे साया सा दस्त-ए-दुआ याद हैअपने आँगन में इक पेड़ था याद है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जिस में अपनी परिंदों से तश्बीह थीतुम को स्कूल की वो दुआ याद है
सर पे साया सा दस्त-ए-दुआ याद ऐसा लगता है <br>हर इम्तहाँ के लियेअपने आँगन में इक पेड़ था ज़िन्दगी को हमारा पता याद है <br> <br>
जिस मैकदे में अपनी परिंदों से तश्बीह थी <br>अज़ाँ सुन के रोया बहुततुम इस शराबी को स्कूल की वो दुआ दिल से ख़ुदा याद है <br> <br>
ऐसा लगता है हर इम्तहाँ के लिये <br>ज़िन्दगी को हमारा पता याद है <br> <br> मैकदे में अज़ाँ सुन के रोया बहुत <br>इस शराबी को दिल से ख़ुदा याद है <br> <br> मैं पुरानी हवेली का पर्दा मुझे <br>कुछ कहा याद है कुछ सुना याद है <br/poem>