कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=बशीर बद्र]]}}[[Category:कविताएँग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाएचराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँकोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए
हमारा अजब हालात थे, यूँ दिल सवेरे का सुनहरा जाम सौदा हो गया आख़िरमुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ।
चराग़ों की समन्दर के सफ़र में इस तरह आँखें जलें, जब आवाज़ दो हमकोहवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ।
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए
मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ, कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए । अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर, मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए । समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको, हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए । मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा, परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए । उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए ।</poem>