Changes

{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आतेसाहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारीआँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते <br>दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह हैसाहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते<br><br>
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी <br>आँखों उड़ने दो परिंदों को अभी ख़्वाब छुपाने शोख़ हवा मेंफिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते <br><br>
दिल उजड़ी हुई इक सराये इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह है <br>हैंअब लोग यहाँ रात जगाने ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते <br><br>
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में अहबाब<brref>दोस्त, मित्र</ref> भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैंफिर लौट के बचपन के ज़माने आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते <br><br>
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं <br>{{KKMeaning}}ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते <br><br> अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं <br>आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते <br><br><br> अहबाब = दोस्त, मित्र<br><br/poem>