661 bytes added,
23:51, 14 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार =रघुवीर सहाय
}}
<poem>
लखूखा आदमी दुनिया में रहता है
मेरे उस दर्द से अनजान जो कि हर वक़्त
मुझे रहता है हिन्दी में दर्द की सैकड़ों
कविताओं के बावजूद
और लाखों आदमियों का जो दर्द मैं जानता हूँ
उससे अनजान
लखूखा आदमी दुनिया में रहे जाता है।
(4.2.61)
</poem>