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नारी / रघुवीर सहाय
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|रचनाकार =रघुवीर सहाय
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नारी बिचारी है
पुरूष की मारी है
तन से क्षुधित है
मन से मुदित है
लपककर झपककर
अन्त में चित है
(1954)
</poem>
Eklavya
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