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00:20, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार =रघुवीर सहाय
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फिर जाड़ा आया फिर गर्मी आई
फिर आदमियों के पाले से लू से मरने की खबर आई :
न जाड़ा ज़्यादा था न लू ज़्यादा
तब कैसे मरे आदमी
वे खड़े रहते हैं तब नहीं दिखते,
मर जाते हैं तब लोग जाड़े और लू की मौत बताते हैं।
(फरवरी, 1972)
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