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19:01, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / काँच के टुकड़े / अशोक वाजपेयी
|आगे=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / जन्मकथा / अशोक वाजपेयी
|सारणी=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / अशोक वाजपेयी
}}
<poem>
तुम ऋतुओं को पसंद करती हो
और आकाश में
किसी-न-किसी की प्रतीक्षा करती हो –
तुम्हारी बाँहें ऋतुओं की तरह युवा हैं
तुम्हारे कितने जीवित जल
राहें घेरते ही जा रहे हैं।
औऱ तुम हो कि फिर खड़ी हो
अलसाई, धूप-तपा मुख लिए
एक नए झरने का कलरव सुनतीं
– एक घाटी की पूरी हरी गरिमा के साथ!
</poem>