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20:04, 15 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=
}}
<poem>
ऎसा क्यों होता है-
कि कविता लिखते वक़्त
जो कवि
अपने ही शब्दों में
तीसमार खाँ
दिखता है
वही कवि
बाद में
उसी कविता के
शब्दों के बीच
मरी मक्खी-सा
पाया जाता है
</poem>