Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह }} [[Category:लम्बी कविता]] {{KKPageNavigation |पी...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=
|आगे=अम्न का राग / भाग 2 / शमशेर बहादुर सिंह
|सारणी=अम्न का राग / शमशेर बहादुर सिंह
}}

<poem>
सच्चाइयाँ
जो गंगा के गोमुख से मोती की तरह बिखरती रहती हैं
हिमालय की बर्फ़ीली चोटी पर चाँदी के उन्मुक्त नाचते
:परों में झिलमिलाती रहती हैं
जो एक हज़ार रंगों के मोतियों का खिलखिलाता समन्दर है
उमंगों से भरी फूलों की जवान कश्तियाँ
कि बसंत के नए प्रभात सागर में छोड़ दी गई हैं।

ये पूरब-पश्चिम मेरी आत्मा के ताने-बाने हैं
मैंने एशिया की सतरंगी किरनों को अपनी दिशाओं के गिर्द

लपेट लिया
और मैं यूरोप और अमरीका की नर्म आँच की धूप-छाँव पर

बहुत हौले-हौले से नाच रहा हूँ
सब संस्कृतियाँ मेरे संगम में विभोर हैं
क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ
बहुत आदिम, बहुत अभिनव।

हम एक साथ उषा के मधुर अधर बन उठे
सुलग उठे हैं
सब एक साथ ढाई अरब धड़कनों में बज उठे हैं
सिम्फोनिक आनंद की तरह
यह हमारी गाती हुई एकता
संसार के पंच परमेश्वर का मुकुट पहन
अमरता के सिंहासन पर आज हमारा अखिल लोकप्रेसिडेंट

बन उठी है
</poem>
397
edits