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13:48, 16 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार =रघुवीर सहाय
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<poem>
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइये।
होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये।
</poem>