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अस्वीकरण
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अपने इन दुखों को / रवीन्द्रनाथ त्यागी
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18:44, 16 फ़रवरी 2009
दुख तुम्हें यतन करने से मिले हैं
बर्षों के तप और
प्रतीक्शा
प्रतीक्षा
से मिले हैं
इन्हें यूँ ही न खो जाने दो
गंगाराम
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