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18:51, 16 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी
|संग्रह=
}}
<poem>
सामने फ्लैट पर
जाड़ों की सुबह ने
अलसाकर जूड़ा बाँधा;
नीचे के तल्ले में
मफ़लर से मुँह ढाँप
सुबह ने सिगरेट पी
चिक पड़ी गोश्त की दुकान पर
सुबह के टुकड़े-टुकड़े किए गए,
मेरे बरामदे में
सुबह ने अख़बार फ़ेंका;
इसके बाद बन्बा खोल
मांजने लगी बरतन
किनारे की बस्तियों से
कमर पर गट्ठर लाद
सुबह चली नदी की ओर;
सिगनल के पास
मुँह में कोयला भरे लाल सीटी देती
सुबह पुल पर गुज़री।
</poem>